Published on: December 19, 2024

अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व, ने 18 दिसंबर 2024 को अपनी बैठक के बाद ब्याज दरों में 0.25% की कटौती की घोषणा की है। इसके साथ ही फेडरल फंड्स रेट अब 4.5%-4.75% से घटकर 4.25%-4.5% के दायरे में आ गया है। यह निर्णय लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में कटौती का हिस्सा है। इस फैसले का उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था को समर्थन देना और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाना है, लेकिन इसके साथ ही महंगाई को नियंत्रित करना भी एक प्राथमिकता बनी हुई है।
फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं, लेकिन महंगाई अभी भी लक्ष्य स्तर से अधिक है। उन्होंने 2025 में ब्याज दरों में और कटौती के संकेत दिए, लेकिन यह संख्या पहले की अपेक्षा कम हो सकती है। पॉवेल ने कहा कि 2025 में केवल दो बार ब्याज दरों में कटौती हो सकती है, जबकि पहले चार कटौतियों की संभावना जताई जा रही थी।
अमेरिकी शेयर बाजार पर असर
फेड के इस निर्णय के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट देखी गई। डाओ जोंस में 1100 अंकों की बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जबकि एसएंडपी 500 और नैस्डैक कंपोजिट क्रमशः 3% और 3.3% गिर गए। यह बाजार की उम्मीदों के विपरीत था, क्योंकि निवेशक अधिक कटौतियों की आशा कर रहे थे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
फेडरल रिजर्व के फैसले का असर न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बल्कि वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी होता है। भारत जैसे उभरते हुए बाजारों पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है। फेड की नीतियां वैश्विक पूंजी प्रवाह को प्रभावित करती हैं, जो भारतीय शेयर बाजार और मुद्रा बाजार पर असर डाल सकती हैं।
भारतीय बाजार पर प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि फेड की ब्याज दर कटौती से भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, अगर डॉलर मजबूत होता है, तो इसका असर भारतीय रुपए पर देखा जा सकता है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को भी अपनी मौद्रिक नीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है।
भविष्य की नीतियों पर दृष्टिकोण
फेडरल रिजर्व ने इस बात पर जोर दिया है कि वह महंगाई को 2% के लक्ष्य पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, ब्याज दरों में कटौती का क्रम धीरे-धीरे होगा ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे। पॉवेल ने यह भी कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर बेहतर बना हुआ है, लेकिन अभी सतर्कता जरूरी है।
फेडरल रिजर्व की यह नीति वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। महंगाई और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन बनाते हुए फेड ने एक बार फिर से दिखाया है कि वह अपनी नीतियों में लचीलापन बनाए रखने के लिए तैयार है। भारतीय निवेशकों और व्यापारियों के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि फेड की नीतियों का घरेलू बाजारों पर कैसा प्रभाव पड़ता है।