
मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर अपनी बात रखते हुए कहा, "हम सभी को यह समझना चाहिए कि धार्मिक विवादों का समाधान एकजुटता, समझ और बातचीत से होना चाहिए। हमारे देश की संस्कृति और इतिहास में कभी भी किसी विशेष धर्म के प्रति असम्मान नहीं किया गया।" उन्होंने आगे कहा, "यह विवाद एक समय का मामला हो सकता है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि धार्मिक सद्भाव और शांति सबसे महत्वपूर्ण हैं।"
समय का मामला हो सकता है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि धार्मिक सद्भाव और शांति सबसे महत्वपूर्ण हैं।"
उनके अनुसार, "हमें यह याद रखना चाहिए कि समाज में विवादों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, बल्कि उनका समाधान शांतिपूर्ण और न्यायिक तरीके से किया जाना चाहिए।" मोहन भागवत ने जोर देते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण के मामले में न्यायालय का जो भी निर्णय होगा, वह सभी को स्वीकार करना चाहिए। यह एक संकेत था कि विवादों का समाधान कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए, और किसी भी प्रकार की हिंसा या असहिष्णुता का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय समाज की धार्मिक सहिष्णुता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "भारत की पहचान उसकी विविधता और सहिष्णुता में है। यहां पर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम हुआ है, और हमें इस विविधता में एकता बनाए रखनी है।" उनका कहना था कि हम सभी को यह समझना चाहिए कि धार्मिक विवादों से कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि समाज में तनाव और अराजकता पैदा होगी। उन्होंने धार्मिक एकता और सामूहिक विकास पर बल दिया, जिससे समाज में शांति और समृद्धि का माहौल बने।
विवाद का समाधान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोहन भागवत के बयान में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि मंदिर-मस्जिद विवाद का हल किसी भी प्रकार के संघर्ष या नफरत के बजाय बातचीत और आपसी समझ से होना चाहिए। उनका यह भी कहना था कि किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए, क्योंकि धार्मिक स्थलों का सम्मान सभी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा कानूनी तरीके से हल हो चुका है और अब हमें इसे शांति से स्वीकार करना चाहिए।