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भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। राज्यसभा में विपक्ष ने उपराष्ट्रपति और सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ इस प्रस्ताव को पेश किया। यह कदम विपक्ष की ओर से उनके कथित पक्षपातपूर्ण रवैये और सदन में निष्पक्षता बनाए रखने में असफलता के आरोपों के चलते उठाया गया है।
अविश्वास प्रस्ताव के कारण
विपक्ष ने धनखड़ पर आरोप लगाया कि उन्होंने सदन में विपक्षी दलों को उचित मंच और समय नहीं दिया। इसके साथ ही उनके बयानों और व्यवहार को लेकर कई सांसदों ने सवाल उठाए हैं।
संसदीय प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाना संभव है। इसके लिए राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। हालांकि, वर्तमान राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए प्रस्ताव के पारित होने की संभावना कम है, क्योंकि सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के पास पर्याप्त समर्थन हैं।
विपक्ष की चुनौती
वर्तमान में विपक्ष के पास राज्यसभा में अपेक्षित संख्या बल नहीं है। 245 सदस्यों की राज्यसभा में विपक्ष के पास कुल 87 सदस्य हैं, जबकि एनडीए के पास 110 सांसद हैं। इसके बावजूद, यह प्रस्ताव विपक्ष की असहमति और चिंताओं को सार्वजनिक करने का एक जरिया बन गया है।
प्रस्ताव का प्रभाव
यह अविश्वास प्रस्ताव भले ही पास न हो, लेकिन यह विपक्ष और सरकार के बीच के तनाव को उजागर करता है। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा हैं।
यह कदम भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई इससे पहले कभी नहीं हुई थी।