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प्रयागराज के पवित्र तटों पर आस्था और श्रद्धा का अनोखा संगम देखने को मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ के अवसर पर संगम में स्नान किया। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश था, जो भारत की परंपराओं और सनातन धरोहर की गहराई को प्रकट करता है।
संगम में आस्था की डुबकी
प्रधानमंत्री मोदी ने कुंभ की दिव्यता को आत्मसात करते हुए त्रिवेणी संगम में स्नान किया, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती एक-दूसरे से मिलती हैं। इस पवित्र अवसर पर उन्होंने विधिवत पूजा-अर्चना की और देश की समृद्धि, शांति और सौहार्द के लिए प्रार्थना की। उनके स्नान के दौरान घाटों पर हर-हर गंगे और मोदी-मोदी के जयघोष गूंजते रहे, जिससे माहौल में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती रही।
महाकुंभ का महत्व और प्रधानमंत्री की उपस्थिति
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़ा विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम है। हर बारह वर्षों में होने वाले इस महायोग में करोड़ों श्रद्धालु अपने पापों का प्रायश्चित करने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस महाकुंभ में उपस्थिति न केवल भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाती है, बल्कि विश्व पटल पर इस आयोजन की भव्यता को भी उजागर करती है।
संतों से मुलाकात और आध्यात्मिक संवाद
स्नान के बाद प्रधानमंत्री ने विभिन्न अखाड़ों के संतों और महात्माओं से मुलाकात की। उन्होंने अध्यात्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद से जुड़े विषयों पर संत समाज से संवाद किया और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान की सराहना की। इस अवसर पर उन्होंने देशवासियों से अपनी जड़ों से जुड़े रहने और सनातन परंपरा के मूल्यों को अपनाने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री मोदी का संगम में स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह भारत की सनातन परंपरा और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक था। उनकी उपस्थिति ने इस आयोजन को और भव्य बना दिया और पूरे देश में आध्यात्मिकता व भारतीय मूल्यों के प्रति नई ऊर्जा का संचार किया। महाकुंभ सदियों से हमारी परंपराओं और आस्था का केंद्र रहा है, और प्रधानमंत्री की भागीदारी ने इसे और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया।