Elon Musk का 120 घंटे काम करने का बयान: कार्य संस्कृति पर नई बहस, लोगों ने इसे "स्लेव ड्राइविंग" (श्रमिकों का शोषण) कहा

Elon Musk 120 hour a week statmentt

हाल ही में कार्य संस्कृति को लेकर दिए गए बयानों ने एक नई बहस को जन्म दिया है। जब इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति ने 70 घंटे कार्य करने की वकालत की और एलएनटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यम ने इसे और आगे बढ़ाते हुए 90 घंटे काम करने की बात कही, तब इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं। यह विवाद अभी थमा भी नहीं था कि अब अमेरिकी उद्योगपति Elon Musk ने 120 घंटे तक काम करने का सुझाव देकर व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है, जहां कुछ लोग इसे एक प्रेरणादायक विचार मान रहे हैं, तो कुछ इसे अव्यावहारिक और श्रमिक अधिकारों के खिलाफ बता रहे हैं।

कार्य संस्कृति पर चल रही बहस का विस्तार

बीते कुछ महीनों में कार्य संस्कृति को लेकर दिए गए बयानों ने वैश्विक स्तर पर बड़ी बहस छेड़ दी है। खासकर तकनीकी और कॉरपोरेट जगत में, जहां कर्मचारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अधिक घंटे काम करें, वहां यह विषय अत्यंत संवेदनशील हो गया है।

नारायण मूर्ति का 70 घंटे काम करने का सुझाव

इंफोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति ने कुछ समय पहले भारतीय युवाओं को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सप्ताह में 70 घंटे कार्य करने की सलाह दी थी। उनका मानना था कि यदि भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति मजबूत करनी है, तो युवाओं को अधिक मेहनत करनी होगी। उनके इस बयान का समर्थन और विरोध दोनों ही देखने को मिले। कुछ लोगों ने इसे भारत के विकास के लिए आवश्यक बताया, तो कुछ ने इसे अवास्तविक और श्रमिकों के शोषण की ओर ले जाने वाला विचार करार दिया।

 

L & T के एस.एन. सुब्रमण्यम ने 90 घंटे काम करने को बताया सही

इस बहस को और आगे बढ़ाते हुए लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यम ने नारायण मूर्ति के बयान का समर्थन किया और कहा कि 90 घंटे कार्य करना भी अनुचित नहीं है। उनके अनुसार, जब कोई व्यक्ति एक उद्योग में प्रवेश करता है, तो उसे पूरी तरह समर्पित रहना चाहिए और जितना संभव हो उतना योगदान देना चाहिए। उनका तर्क था कि अधिक काम करने से न केवल व्यक्तिगत विकास होगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी तेजी से आगे बढ़ेगी।

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अब Elon Musk का 120 घंटे काम करने का सुझाव

एलन मस्क, जो अपने कठोर कार्य संस्कृति और अनुशासन के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने इस बहस को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में सफल होना चाहता है और दुनिया को बदलना चाहता है, तो उसे सप्ताह में 120 घंटे तक काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए

मस्क ने अतीत में भी अपने कर्मचारियों से लंबे समय तक काम करने की अपेक्षा की थी, खासतौर पर टेस्ला, स्पेसएक्स और ट्विटर (अब X) में। ट्विटर के अधिग्रहण के बाद उन्होंने कर्मचारियों को "हार्डकोर" कार्य संस्कृति अपनाने के लिए कहा था, जहां उनसे सप्ताह में 80 घंटे से अधिक काम करने की उम्मीद की गई थी। उनका मानना है कि अत्यधिक मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण ही किसी भी व्यक्ति या कंपनी को असाधारण ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

एलन मस्क के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर जोरदार बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे प्रेरणादायक मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे असंवेदनशील और असंभव बता रहे हैं।

समर्थकों की राय:
जो लोग अधिक मेहनत करने और अपनी क्षमता को पूरी तरह उपयोग में लाने में विश्वास रखते हैं, वे मस्क के इस बयान का समर्थन कर रहे हैं।
 उनका मानना है कि "यदि आप कुछ असाधारण करना चाहते हैं, तो आपको दूसरों की तुलना में अधिक प्रयास करना होगा।"
 सिलिकॉन वैली और कई स्टार्टअप कल्चर में यह आम बात है कि लोग हफ्ते में 80-100 घंटे तक काम करते हैं, खासकर जब वे अपने करियर के शुरुआती दौर में होते हैं।

विरोध करने वालों की राय:
आलोचकों का कहना है कि 120 घंटे का कार्य सप्ताह असंभव है और यह कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।
 कई लोगों ने इसे "स्लेव ड्राइविंग" (श्रमिकों का शोषण) कहा और इसे अस्वस्थ कार्य संस्कृति का उदाहरण बताया।
कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि "उत्पादकता हमेशा काम करने के घंटों से नहीं, बल्कि स्मार्ट वर्क और बैलेंस से आती है।"

क्या यह व्यवहारिक है?

अब सवाल यह उठता है कि क्या 70, 90 या 120 घंटे का कार्य सप्ताह वास्तव में संभव है?

स्वास्थ्य पर प्रभाव:
अत्यधिक कार्यभार से मानसिक तनाव, अवसाद और शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं। जापान में "करोशी" (अत्यधिक कार्य के कारण मृत्यु) जैसी घटनाएं इसका उदाहरण हैं।

उत्पादकता बनाम कार्य घंटे:
शोध बताते हैं कि लगातार अधिक घंटे काम करने से उत्पादकता में गिरावट आती है। गुणवत्ता और नवाचार के लिए आराम और संतुलन भी आवश्यक हैं।

संस्कृति और उद्योग पर निर्भरता:
यह भी देखा गया है कि टेक और स्टार्टअप इंडस्ट्री में लंबे कार्य घंटे आम हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों में यह हमेशा संभव नहीं होता।

निष्कर्ष

एलन मस्क का 120 घंटे काम करने का बयान कार्य संस्कृति को लेकर एक नई बहस को जन्म दे चुका है। हालांकि, इससे पहले नारायण मूर्ति और एस.एन. सुब्रमण्यम भी इसी दिशा में अपने विचार रख चुके थे। अब सवाल यह है कि क्या वाकई में लंबे समय तक काम करना ही सफलता की कुंजी है, या फिर संतुलित और स्मार्ट वर्किंग अप्रोच अधिक प्रभावी साबित होगी?

बहरहाल, यह बहस सिर्फ भारत या अमेरिका तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में इसे लेकर चर्चाएं हो रही हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में कार्य संस्कृति किस दिशा में विकसित होती है – "हार्डकोर" मेहनत का युग जारी रहेगा या "स्मार्ट वर्क" का नया दौर शुरू होगा?"

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