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आज का दिन आध्यात्मिक दृष्टि से अतुलनीय है। जहां एक ओर बसंत पंचमी का उल्लास ज्ञान, संगीत और विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना के रूप में मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर महाकुंभ 2025 का अंतिम अमृत स्नान करोड़ों श्रद्धालुओं को मोक्ष प्राप्ति का पुण्य अवसर प्रदान कर रहा है। इस दैवीय संयोग ने पूरे देश में भक्ति, आस्था और उत्साह का माहौल बना दिया है।
महाकुंभ 2025: अंतिम अमृत स्नान का दिव्य अवसर
महाकुंभ, जो हर 12 वर्षों में एक बार आता है, सनातन धर्म का सबसे बड़ा आध्यात्मिक उत्सव है। 3 फरवरी 2025 को इसका अंतिम अमृत स्नान होने के कारण आज का दिन और भी विशेष बन गया है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आस्था की विशाल लहर उमड़ पड़ी है।
अमृत स्नान का आध्यात्मिक महत्व
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का महासंगम है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। इन्हीं स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन होता है, और इस दौरान अमृत स्नान को सर्वाधिक पुण्यकारी माना जाता है।
अंतिम अमृत स्नान का विशेष महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह कुंभ पर्व के समापन का प्रतीक है। सनातन धर्म में माना जाता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से समस्त पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है।
श्रद्धालुओं की भीड़ और भक्तिमय वातावरण
तड़के से ही संगम तट पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। "हर हर गंगे!", "जय श्रीराम!" और "हर हर महादेव!" के गगनभेदी जयघोष से पूरा प्रयागराज भक्तिमय हो गया। साधु-संतों के अखाड़ों का भव्य प्रवेश हुआ, जिसमें नागा संन्यासियों की टोली सबसे आकर्षक रही। भस्म रमाए, जटा-जूटधारी संन्यासियों ने स्नान किया, और उनके साथ हजारों श्रद्धालु इस पुण्य अवसर का लाभ उठाने संगम की ओर बढ़े।
संतों और विद्वानों के प्रवचन
महाकुंभ केवल स्नान तक सीमित नहीं, बल्कि यह ज्ञान, धर्म और आध्यात्मिक उन्नति का संगम भी है। इस अवसर पर विद्वान संतों ने प्रवचन दिए, जिनमें जीवन, आत्मशुद्धि और सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला गया। हवन, यज्ञ और दीपदान की दिव्य छटा ने महाकुंभ को और भी पवित्र बना दिया।
अब तक 34.97 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान
महाकुंभ 2025 अपने भव्यतम रूप में पहुंच चुका है, और अब तक 34.97 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पवित्र संगम तट पर आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। यह संख्या इस महापर्व की दिव्यता और इसकी अपार लोकप्रियता को दर्शाती है। अंतिम अमृत स्नान के अवसर पर भी लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान कर रहे हैं, जिससे यह कुंभ ऐतिहासिक बन गया है।