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1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक रहे हैं। इन दंगों में हजारों निर्दोष सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। न्याय की इस लंबी लड़ाई में आखिरकार एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला उन हजारों पीड़ित परिवारों के लिए किसी आशा की किरण से कम नहीं है, जो पिछले चार दशकों से न्याय की उम्मीद लगाए हुए थे। इस फैसले ने एक बार फिर 1984 दंगों के काले अध्याय को सबके सामने ला खड़ा किया है।
सज्जन कुमार को क्यों मिली उम्रकैद?
राउज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में सज्जन कुमार को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। अदालत ने अपने फैसले में माना कि सज्जन कुमार ने न केवल हिंसा को बढ़ावा दिया, बल्कि दंगों की साजिश में भी शामिल रहे।
यह कोई पहला फैसला नहीं है जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया हो। 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सज्जन कुमार को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा दी थी। हालांकि, उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब, एक और अदालत ने उनके खिलाफ कड़ा निर्णय सुनाया है, जिससे उनके लिए कानूनी मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
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1984 सिख दंगे: एक भयावह त्रासदी
31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद पूरे देश, खासकर दिल्ली, कानपुर और बोकारो में सिख समुदाय के खिलाफ भारी हिंसा भड़क उठी।
कहा जाता है कि यह दंगे संगठित और सुनियोजित तरीके से भड़काए गए थे। हजारों सिखों को जिंदा जला दिया गया, उनके घरों और दुकानों को लूटकर आग लगा दी गई, और महिलाओं पर घिनौने अत्याचार किए गए। रिपोर्टों के मुताबिक, इस दंगे में कई कांग्रेस नेताओं की भूमिका संदिग्ध थी, जिनमें से सज्जन कुमार का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता रहा।
चश्मदीद गवाहों और पीड़ितों के बयान बताते हैं कि सज्जन कुमार दंगों के दौरान भीड़ को भड़काने में शामिल थे। उनके खिलाफ कई लोगों ने गवाही दी, लेकिन राजनीतिक प्रभाव और कानूनी पेचीदगियों के चलते उन्हें सजा दिलाने में दशकों लग गए।
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पीड़ित परिवारों की लंबी लड़ाई
1984 के दंगों के पीड़ित परिवार बीते कई दशकों से न्याय की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस केस में सज्जन कुमार को सजा मिलने को एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। कोर्ट के इस फैसले से उन पीड़ितों को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी, जिन्होंने सालों तक इंसाफ के लिए संघर्ष किया।कई पीड़ित परिवारों ने कोर्ट के बाहर फैसले का स्वागत किया और कहा कि "भले ही न्याय मिलने में देरी हुई, लेकिन आखिरकार सच की जीत हुई।"
हालांकि, यह मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। सज्जन कुमार के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प मौजूद है। अगर वह वहां अपील करते हैं, तो कानूनी लड़ाई आगे भी जारी रह सकती है।
इसके अलावा, कई और आरोपी भी अभी कानून के शिकंजे में आने बाकी हैं। इस फैसले के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 1984 के अन्य आरोपियों पर भी इसी तरह की सख्त कार्रवाई होगी या नहीं।