'90 घंटे काम' विवाद और कार्य संस्कृति पर पुनर्विचार | क्या यह वास्तविकता में संभव है?

L & T chairman

हाल ही में, इंजीनियरिंग सेक्टर की दिग्गज कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (L&T)  के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन का एक बयान चर्चा का केंद्र बन गया। उन्होंने सलाह दी कि सफलता पाने के लिए लोगों को हफ्ते में 90 घंटे काम करने की आदत डालनी चाहिए। यह बयान आते ही सोशल मीडिया और विशेषज्ञों के बीच तीखी बहस छिड़ गई। आइए, इस विवाद पर गहराई से विचार करें और समझें कि इसमें "कार्य संस्कृति" और "मानव-जीवन संतुलन" की क्या भूमिका है।

'90 घंटे काम' की धारणा: क्या यह व्यवहारिक है?

"90 घंटे काम" की अवधारणा सुनते ही यह सवाल उठता है कि क्या यह आधुनिक समय में वास्तव में संभव है? किसी भी स्वस्थ समाज में, काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यधिक आवश्यक है। लंबे समय तक काम करने से कर्मचारी मानसिक और शारीरिक थकान का शिकार हो सकते हैं, जो उनकी उत्पादकता और रचनात्मकता को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

कार्यस्थल पर परिश्रम बनाम संतुलन

कार्यस्थल पर परिश्रम की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि अत्यधिक काम करने से क्या नुकसान हो सकते हैं। कार्य संस्कृति को विकसित करते समय इन दो बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए:

  1. परिश्रम (Perplexity): क्या 90 घंटे काम करने से कठिन और जटिल समस्याओं का समाधान मिल सकेगा? या यह केवल थकान और हताशा का कारण बनेगा?
  2. उत्साह (Burstiness): काम के दौरान लगातार उच्च ऊर्जा और प्रेरणा बनाए रखना कितना कठिन है? अगर काम का दबाव अत्यधिक हो, तो कर्मचारी जल्दी ही थक सकते हैं और उनका उत्साह कम हो सकता है।

लंबे समय तक काम करने का विचार तभी प्रभावी हो सकता है जब काम रचनात्मक और प्रेरक हो। लेकिन यदि यह केवल घंटे गिनने तक सीमित हो जाए, तो यह कर्मचारियों की कुशलता और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

आज के समय में, जब कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य, कार्य-जीवन संतुलन और कर्मचारियों की खुशी को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है, ऐसे में "90 घंटे काम" जैसे बयान विवादास्पद हो जाते हैं।

कार्यस्थल पर नई प्राथमिकताएँ

  • परिणाम-आधारित दृष्टिकोण: आधुनिक कंपनियाँ अब केवल काम के घंटों पर ध्यान नहीं देतीं, बल्कि परिणाम और गुणवत्ता पर फोकस करती हैं। यह दृष्टिकोण अधिक प्रभावी साबित हो रहा है।
  • हाइब्रिड मॉडल और लचीलापन: महामारी के बाद से, कई संगठनों ने यह महसूस किया है कि लचीलापन कर्मचारियों के लिए जरूरी है। यह केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन के लिए भी आवश्यक है।
  • मानवता केंद्रित कार्य संस्कृति: संगठन अब कर्मचारियों के स्वास्थ्य, खुशी और संतोष को प्राथमिकता देने लगे हैं।

काम का दबाव और उसका प्रभाव

लंबे समय तक काम करने की संस्कृति अक्सर कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। अत्यधिक काम करने से न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि यह कर्मचारियों के परिवार और सामाजिक जीवन को भी नुकसान पहुँचा सकता है।

"90 घंटे काम" करने का विचार आज के समय में न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह कर्मचारियों की भलाई और संगठन की उत्पादकता के लिए भी हानिकारक हो सकता है। सफलता केवल घंटों की गिनती से नहीं, बल्कि गुणवत्ता, रचनात्मकता और परिणामों से मापी जानी चाहिए।

नेताओं को चाहिए कि वे अपनी कार्य संस्कृति में सुधार करें, जहाँ काम और जीवन के बीच संतुलन बनाया जा सके। यह न केवल कर्मचारियों के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि संगठन के लिए भी दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करेगा।

इस संदर्भ में, हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या सफलता का मतलब केवल काम के घंटे हैं, या फिर वह संतुलन, उत्पादकता और मानसिक संतोष से परिभाषित होगी?

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